Paramparagat Krishi Vikas Yojana 2024: परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) क्या है?

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) का परिचय

परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana या PKVY) भारत सरकार द्वारा 2015 में प्रारंभ की गई एक महत्वाकांक्षी योजना है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य कृषि क्षेत्र में पारंपरिक और जैविक खेती के तरीकों को बढ़ावा देना है। परंपरागत खेती, जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को अनुकूल लाभ प्रदान करती है, इसके अंतर्गत शामिल है।

PKVY योजना की स्थापना का प्रमुख कारण उन मुद्दों का समाधान करना है जो रासायनिक उर्वरक और पेस्टीसाइड्स के अत्यधिक उपयोग से उत्पन्न हुए हैं। इन तरीकों ने ना केवल मृदा की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, बल्कि खाद्य पदार्थों में विषाक्तता का स्तर भी बढ़ा दिया है। इस योजना के माध्यम से किसानों को जैविक तरीकों का उपयोग कर उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाता है, जिससे जमीन की उर्वरता और पर्यावरण संतुलन दोनों में सुधार आ सके।

परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत, जैविक खेती को अपनाने वाले किसानों को वित्तीय सहायता, तकनीकी ज्ञान, और जरूरी संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है। यह योजना मुख्य रूप से ‘क्लस्टर एप्रोच’ पर आधारित है, जिसमें एक साथ कई किसानों के समूह को चार वर्ष की अवधि की सहायता दी जाती है। इसके तहत पहले तीन वर्षों में किसानों को जैविक खेती के तरीकों का पालन करना होता है और चौथे वर्ष में उन्हें इसके लाभ प्राप्त होते हैं।

इस योजना को कृषि विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय, और सहकारिता विभाग द्वारा मिलकर क्रियान्वित किया जाता है। राज्य सरकारें भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसके अलावा, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षण और जागरूकता प्रदान की जाती है। PKVY का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ खेती को अपनाकर किसानों की आय में वृद्धि और ग्रामीण क्षेत्रों में खेती का पुनरुद्धार करना है।

Paramparagat Krishi Vikas Yojana 2024 के प्रमुख उद्देश्य

परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana) का मुख्य उद्देश्य जैविक खेती को बढ़ावा देना है, जो किसानों को रसायन-मुक्त खेती के तरीकों से परिचित कराते हुए उनकी आय में वृद्धि करने पर केंद्रित है। जैविक खेती की पद्धति अपनाकर किसान पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत किसानों को पारंपरिक कृषि पद्धतियों के साथ-साथ आधुनिक तकनीकों का ज्ञान भी प्रदान किया जाता है, ताकि वे अधिक उत्पादन और उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य उत्पादों का उत्पादन कर सकें।

रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अधिक उपयोग मिट्टी के पोषक तत्वों को नुकसान पहुंचाता है और पर्यावरण को हानि पहुँचाता है। इस योजना के माध्यम से किसानों को प्राकृतिक उर्वरकों और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करने के प्रति प्रेरित किया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है।

परंपरागत कृषि विकास योजना का एक अन्य महत्त्वपूर्ण उद्देश्य किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करना है। जैविक उत्पादों की मांग में बढ़ोतरी के कारण किसानों को उनके उत्पादों के लिए बेहतर बाजार और मूल्य प्राप्त हो सकते हैं। इसके अलावा, योजना के तहत किसानों को संगठित समूहों में कार्य करने और समूह में फसल उत्पादन करने के लिए भी प्रेरित किया जाता है, जिससे उत्पादन की लागत कम होती है और बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है।

इस योजना के तहत उत्पादित जैविक खाद्य उत्पाद न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं, बल्कि यह उपभोक्ताओं के लिए एक सुरक्षित और पोषणयुक्त विकल्प भी प्रदान करते हैं। इस प्रकार paramparagat krishi vikas yojana न केवल किसानों की आय में वृद्धि करती है, बल्कि पूरे पर्यावरण को भी संरक्षित करने के लिए एक संरचित दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) 2024 के अंतर्गत गतिविधियाँ

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के अंतर्गत विभिन्न गतिविधियाँ शामिल की गई हैं, जिन्हें जैविक खेती को बढ़ावा देने और किसानों को समर्थ बनाने के उद्देश्य से व्यवहार में लाया गया है। इन गतिविधियों में जैविक खेती के उपकरण प्रदान करना, खाद का वितरण, प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएं, और प्रमाणन प्रक्रियाएं प्रमुख हैं।

प्रथम, जैविक खेती के उपकरण जैसे कि कंपोस्ट टर्नर, वेर्मीकम्पोस्ट संयंत्र, और नीम कोटेड यूरिया जैसी नवीनतम तकनीक को किसानों तक पहुँचाया जाता है। ये उपकरण न केवल खेती की लागत को कम करते हैं बल्कि उपज की गुणवत्ता में भी सुधार लाते हैं।

द्वितीय, खाद का वितरण कार्यक्रम के माध्यम से किसानों को जैविक खाद प्रदान किया जाता है, जिसमें वर्मी कंपोस्ट, बायोफर्टिलाइजर, और जैविक कीटनाशक शामिल हैं। यह खाद न केवल मिट्टी की स्वास्थ्य में सुधार करती है बल्कि फसलों की पौष्टिकता भी बढ़ाती है।

इसके अतिरिक्त, विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं, जिनमें किसानों को जैविक खेती की उन्नत तकनीक और उसमे उपयोग होने वाली सामग्री की सही उपयोग विधि सिखाई जाती है। ये कार्यक्रम किसानों को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करते हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनने की दिशा में प्रेरित करते हैं।

अंत में, प्रमाणन प्रक्रियाएं भी PKVY के अंतर्गत आती हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से किसानों की उपज का जैविक प्रमाणन किया जाता है, जिससे उनके उत्पादों को बाज़ार में ऊँची कीमत मिलती है और उपभोक्ताओं में उनकी विश्वसनीयता बढ़ती है। कुल मिलाकर, PKVY की ये गतिविधियाँ किसानों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करती हैं और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में सहायक होती हैं।

परंपरागत कृषि विकास योजना, जिसे ‘paramparagat krishi vikas yojana’ भी कहा जाता है, का उद्देश्य पारंपरिक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना और किसानों को सशक्त बनाना है। इस योजना में किसानों और कृषि संगठनों की भागीदारी अनिवार्य है, क्योंकि उनके सामूहिक प्रयासों से ही इस योजना के उद्देश्य पूरे हो सकते हैं। सबसे पहले, किसानों को जागरूक किया जाता है और उन्हें योजना के लाभ और इसके प्रति अपने दायित्वों के बारे में जानकारी दी जाती है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों और कार्यशालाओं के माध्यम से किसानों को जैविक खेती के नवीनतम तरीकों और प्रौद्योगिकियों से अवगत कराया जाता है।

कृषि संगठन, जिन्हें यहाँ क्षेत्रीय कृषि समर्थन समूहों के रूप में संदर्भित किया गया है, इन प्रयासों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संगठन किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं, आवश्यक सामानों और सेवाओं का अधिग्रहण करने में मदद करते हैं, और खेत स्तर पर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इन संगठनों द्वारा किसान समूहों का गठन भी किया जाता है, जिसमें सामूहिक खेती और संसाधनों के साझा उपभोग पर जोर दिया जाता है। इससे न केवल खेती लागत में कमी होती है बल्कि उत्पादकता भी बढ़ती है।

इसके अलावा, परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत किसान और संगठन मिलकर स्वयंसेवी ग्रामीण संघों (विलेज वॉलंटियर एसोसिएशन) का गठन भी करते हैं। यह संघ ग्राम स्तर पर कृषि गतिविधियों के समन्वय और निगरानी में सहायता करता है। इस संघ का प्रमुख कार्य किसानों को जैविक बीज, उर्वरक और अन्य कृषि इनपुट्स की समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करना है। इसके साथ ही, वे भूमि की उर्वरता, जल प्रबंधन और फसल रोटेशन के महत्त्व पर भी जागरूकता फैलाते हैं।

अतः परंपरागत कृषि विकास योजना में किसानों और संगठनों की सहभागिता अनिवार्य है और यह सहभागिता ही इस योजना की सफलता की कुंजी है। इन सभी तत्वों के समेकित प्रयास से एक स्थायी और समृद्ध कृषि व्यवस्था का विकास संभव हो पाता है।

परंपरागत कृषि विकास योजना (परंपरागत कृषि विकास योजना 2024) के तहत किसानों को वित्तीय सहायता और अनुदान के माध्यम से कृषि को प्रोत्साहित किया जाता है। सरकार इस योजना के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु विशेष आर्थिक सहयोग प्रदान करती है। इसके अंतर्गत किसानों को विभिन्न चरणों में आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है, जिससे वे अपने उत्पादन में सुधार कर सकें और जैविक खेती को अपनाने में सक्षम हो सकें।

योजना के तहत किसानों को चार वर्षों की अवधि में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। पहले वर्ष में सरकार प्रत्येक किसान को 20 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर सहायता देती है, जो कि जैविक उत्पादन की तैयारी और मशीनरी की खरीद के लिए होती है। दूसरे और तीसरे वर्ष में यह राशि 15 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर होती है, जबकि अंतिम वर्ष में 10 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की सहायता दी जाती है।

इस योजना के तहत किसानों को मार्गदर्शन और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए भी विशेष अनुदान की व्यवस्था की गई है। कृषि वैज्ञानिक और विशेषज्ञ समय-समय पर विभिन्न वर्कशॉप और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जिनमें किसानों को जैविक खेती के लाभ, तकनीक और प्रबंधन के बारे में बताया जाता है। इसके अलावा, सरकार योजना के तहत बायोफर्टिलाइजर, जैविक बीज और आवश्यक उपकरणों की खरीद पर भी अनुदान देती है।

इस योजना के तहत अनुदान प्राप्त करने के लिए किसानों को विशेष प्रक्रिया से गुजरना होता है। सबसे पहले, उन्हें संबंधित कृषि विभाग में आवेदन करना होता है। इस आवेदन में व्यक्तिगत और कृषि संबंधी जानकारियां भरनी होती हैं। इसके बाद, कृषि विभाग द्वारा आवेदन की जांच की जाती है और स्वीकृत पाए जाने पर वित्तीय सहायता और अनुदान राशि का वितरण किया जाता है। यह प्रक्रिया सरल और पारदर्शी है, ताकि अधिक से अधिक किसान इसका लाभ उठा सकें और परंपरागत कृषि विकास योजना 2024 के तहत अपनी खेती को उन्नत बना सकें।

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) का प्रभाव और लाभ

परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana) ने भारतीय कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए हैं। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य किसानों की आय में वृद्धि और कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करना है। जैविक खेती को प्रोत्साहन देने वाली इस पहल के परिणामस्वरूप खाद्यान्न की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जो उपभोक्ताओं के लिए स्वास्थ्यवर्धक विकल्प प्रस्तुत करता है।

इस योजना के तहत किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। जैविक उत्पादों की मांग में निरंतर वृद्धि हुई है, जिससे किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिल रहा है। पारंपरिक खेती की तुलना में, जैविक तरीके से उत्पादित फसलें न केवल अधिक लाभप्रद होती हैं, बल्कि किसानों के लिए आत्मनिर्भरता का भी मार्ग प्रशस्त करती हैं।

पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, परंपरागत कृषि विकास योजना का प्रभाव उल्लेखनीय है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग में कमी आने से मिट्टी की गुणवत्ता और जल संसाधनों का संरक्षण हो रहा है। जैविक खेती के माध्यम से किसानों ने कम खाद्यान्न उत्पादन के मिथक को तोड़ा है और साबित किया है कि पारंपरिक विधियों के माध्यम से भी उच्च उत्पादन संभव है।

योजना ने जैविक खेती की दिशा में नए रुझानों को जन्म दिया है। उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार के साथ, यह योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसने किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाई है और उन्हें प्राकृतिक संसाधनों के स्थायी उपयोग के महत्व का ज्ञान दिलाया है।

कुल मिलाकर, परंपरागत कृषि विकास योजना न केवल किसानों की आय और खाद्यान्न की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक सहायक सिद्ध हो रही है, बल्कि पर्यावरण और जैविक खेती की दिशा में भी सकारात्मक प्रभाव डाल रही है। इसके परिणामस्वरूप देशभर में जैविक उत्पादों की मांग में तेजी से वृद्धि हो रही है।

प्रदर्शन और सफलता की कहानियाँ

परंपरागत कृषि विकास योजना (paramparagat krishi vikas yojana) ने कई किसानों की ज़िंदगी में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं, जो इस योजना की प्रभावशीलता को दर्शाता है। इस योजना के तहत देश के विभिन्न जिलों में अद्वितीय सफलता की कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से कुछ कहानियाँ बाकी किसानों को प्रेरणा देने का काम करती हैं।

उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र के नासिक जिले के किसान रामनाथ पाटील ने परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत जैविक खेती को अपनाया। शुरुआत में उन्हें आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन सरकारी सहायता और प्रशिक्षण का लाभ उठाते हुए, उन्होंने पूर्ण रूप से जैविक खेती में सफलता पाई। आज, उनकी खेतीबाड़ी क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन चुकी है। रामनाथ का मानना है कि परंपरागत कृषि विकास योजना ने उन्हें न केवल आर्थिक रूप से सशक्त बनाया बल्कि पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार भी बनाया।

इसी तरह, हरियाणा के करनाल जिले के एक महिला किसान सुनीता देवी ने इस योजना के तहत विशेष रूप से महिला किसानों के लिए उपलब्ध सुविधाओं का लाभ उठाया। सुनीता ने स्थानीय बायोफर्टिलाइजर उत्पादन केंद्र स्थापित कर किसानों को सप्लाई करना शुरू किया। इस कदम से न केवल उनकी आय में वृद्धि हुई बल्कि सैकड़ों किसानों की खेती की लागत भी कम हुई। सुनीता कहती हैं कि परंपरागत कृषि विकास योजना से उन्हें व्यवसायिक आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई है।

उत्तराखंड के नैनीताल जिले में भी परंपरागत कृषि विकास योजना के माध्यम से समुदाय आधारित कृषि को प्रोत्साहित किया गया है। जिले के किसानों ने संगठित होकर जैविक खेती को सफलतापूर्वक लागू किया और इस नई पद्धति से उगाने वाली फसलों की गुणवत्ता में स्पष्ट सुधार देखा गया। इस पहल ने न केवल उनके आर्थिक हालात बेहतर किए बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का भी संरक्षण किया।

अंतत: इन कहानियों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि परंपरागत कृषि विकास योजना ने न केवल किसानों की आय में वृद्धि की है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और पर्यावरण के प्रति जागरूक भी बनाया है। यह योजना विभिन्न जिलों में सकारात्मक परिणाम प्राप्त कर रही है और इसे अब मॉडल योजना के रूप में देखा जा रहा है।

Paramparagat Krishi Vikas Yojana PKVY 2024 में सुधार के सुझाव और भविष्य की दिशा

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) की निरंतरता और सफलता को सुनिश्चित करने के लिए सुधार के विभिन्न सुझाव और इसके भविष्य की दिशा पर विचार करना अति आवश्यक है। विशेषज्ञों का मानना है कि योजना को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए। इसमें किसान हितों की प्रमुखता, तकनीकी सहयोग, और वित्तीय सुविधाओं के विस्तार शामिल हैं।

विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि योजना में अधिक कृषि वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए, ताकि किसानों को नवीनतम तकनीकों और पारंपरिक विधियों का समन्वय करने में सहायता मिल सके। इसके अतिरिक्त, स्थानीय कृषि विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण और संगोष्ठियों का आयोजन भी लाभकारी साबित हो सकता है।

किसानों की प्रतिक्रिया के अनुसार, योजना के अंतर्गत उन्हें वित्तीय सहायता और संसाधनों की उपलब्धता में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है। वित्तीय सहायता के साथ-साथ, उर्वरकों एवं जैविक खाद के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी प्रदान करना एक और महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

इसके अलावा, संभावित सुधार के क्षेत्रों में योजना के दौरान उगाई जाने वाली फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए निरंतर निगरानी और सुधार आवश्यक है। सही समय पर सही जानकारी पहुंचाना भी योजना की सफलता की कुंजी है।

योजना की भविष्य की दिशा में डिजिटल कृषि उपकरणों और स्मार्ट फार्मिंग तकनीकों का प्रवेश एक नई क्रांति ला सकता है। आधुनिक तकनीकी विकास और अनुसंधान पर आधारित कृषि पद्धतियाँ अपनाने से उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है। इसके लिए सरकारी और निजी क्षेत्रों के समन्वय से विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

निस्संदेह, परंपरागत कृषि विकास योजना का लक्षित लाभ तभी प्राप्त हो सकता है जब इनमें सुधार और नवाचार के उठाए गए अनेक जरूरी कदमों को अपनाया जाएगा। इसका अंतिम उद्देश्य किसानों की आजीविका को सुरक्षित और स्थिर बनाना है, जिससे राष्ट्रीय कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सके।

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